पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: इतिहास, परंपरा, तिथि, महत्व और श्रद्धा का महासागर
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा भारत के सबसे प्रसिद्ध, विशाल और आध्यात्मिक पर्वों में से एक है, जिसे हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित किया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र अपने रथों पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर श्रीमंदिर से बाहर निकलकर गुंडिचा मंदिर तक यात्रा करते हैं। यह यात्रा केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक समरसता का प्रतीक बन चुकी है। इस यात्रा में भाग लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और भगवान के दर्शन तथा रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
इतिहास और पौराणिक कथा:
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास वैदिक काल तक जाता है। कहा जाता है कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने देह त्यागी, तब उनके पार्थिव शरीर को पुरी लाया गया और वहां उनका भगवान जगन्नाथ के रूप में विग्रह स्थापित हुआ। भगवान विष्णु के इस स्वरूप को उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पूजा जाता है। स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में इस यात्रा का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह यात्रा भगवान के भक्तों के बीच आने और उनके साथ नौ दिनों तक रहने की प्रतीक मानी जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं और वहां कुछ दिन विश्राम करते हैं।
रथ यात्रा 2025: तिथि और मुख्य कार्यक्रम:-
2025 में रथ यात्रा का आयोजन 27 जून 2025, शुक्रवार को होगा। इस दिन आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि पड़ रही है। धार्मिक कार्यक्रम स्नान पूर्णिमा से शुरू होकर नीलाद्री विजय तक चलते हैं। स्नान पूर्णिमा के दिन भगवान का सार्वजनिक स्नान होता है, इसके बाद वे 14 दिनों तक दर्शन नहीं देते जिसे ‘अनवसरा काल’ कहा जाता है। इस काल के अंत में, रथ यात्रा का शुभारंभ होता है। 27 जून को तीनों भगवानों को उनके भव्य रथों पर बैठाकर श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाएगा। वहाँ वे 9 दिन तक रहेंगे। 4 जुलाई को ‘बहुड़ा यात्रा’ यानी वापसी यात्रा होगी। 5 जुलाई को ‘सुना बेशा’ होगा जब भगवान स्वर्ण आभूषणों से सजते हैं और फिर ‘नीलाद्री विजय’ अर्थात श्रीमंदिर में वापसी करते हैं।
तीनों रथ और उनका स्वरूप
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए तीन भव्य रथ बनाए जाते हैं, जिनका आकार, रंग, नाम और प्रतीक भिन्न होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष होता है, इसमें 16 पहिए होते हैं और यह लाल-पीले रंग से सुसज्जित होता है। बलभद्र के रथ को तालध्वज कहा जाता है, इसके 14 पहिए होते हैं और यह लाल-हरे रंग का होता है। सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन होता है, इसके 12 पहिए होते हैं और यह काले और लाल रंग का होता है। रथों को पारंपरिक नीम की लकड़ी से तैयार किया जाता है, और इनकी निर्माण प्रक्रिया अत्यंत विधिपूर्वक होती है। हर रथ में पुजारियों, सेवकों और विशेष वाद्य यंत्रों के साथ भगवान को बैठाकर हजारों भक्त उन्हें रस्सी से खींचते हैं।
चेरा पाहरा: समानता का प्रतीक
पुरी के गजपति राजा रथ यात्रा के दौरान ‘चेरा पाहरा’ नामक रस्म निभाते हैं, जिसमें वह भगवान के रथों की झाड़ू लगाकर उनकी सेवा करते हैं। यह रस्म यह सिखाती है कि भगवान के सामने सभी समान हैं – चाहे राजा हो या रंक। यह भावना हिंदू धर्म के सामाजिक समरसता के दर्शन को दर्शाती है।
गुंडिचा मंदिर और नौ दिवसीय ठहराव
गुंडिचा मंदिर वह स्थान है जहाँ भगवान जगन्नाथ अपनी रथ यात्रा के बाद ठहरते हैं। यह मंदिर श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। इस अवधि में पुरी नगर में भजन-कीर्तन, कथा, पूजा और अन्नदान का विशाल आयोजन होता है। श्रद्धालु लगातार दर्शन हेतु लाइन में खड़े रहते हैं और भगवान के चरणों में अपना प्रेम अर्पित करते हैं।
वापसी यात्रा और सुना बेशा
रथ यात्रा के बाद 9वें दिन ‘बहुड़ा यात्रा’ होती है, जिसमें तीनों भगवान अपने रथों में सवार होकर वापस श्रीमंदिर लौटते हैं। अगले दिन ‘सुना बेशा’ होता है, जिसमें भगवान सोने के आभूषणों से सुसज्जित होते हैं और हजारों श्रद्धालु इस अनुपम दृश्य के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। इसके बाद ‘नीलाद्री विजय’ नामक अंतिम अनुष्ठान के तहत भगवान को फिर से श्रीमंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है।
धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
पुरी की रथ यात्रा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत मूल्यवान है। यह पर्व सबको जोड़ता है, समानता और सेवा की भावना को जाग्रत करता है। यह उस चेतना का प्रतीक है जहाँ भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं, उनके कंधों से कंधा मिलाकर चलते हैं और यह दर्शाते हैं कि भक्ति में कोई ऊंच-नीच नहीं होती। इसके अलावा, रथ यात्रा एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जिसमें ओडिशा की पारंपरिक कलाएं, संगीत, नृत्य, लोक परंपराएं और शिल्प कौशल सामने आते हैं।
पुरी के बाहर रथ यात्राएँ
पुरी की रथ यात्रा का अनुकरण करते हुए देश के अनेक शहरों जैसे कोलकाता, अहमदाबाद, दिल्ली, रांची, हैदराबाद आदि में भी जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। विदेशों में अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी ISKCON द्वारा रथ यात्राएं आयोजित की जाती हैं। परंतु पुरी की रथ यात्रा अपनी भव्यता, परंपरा और दिव्यता में अद्वितीय है।
निष्कर्ष:-
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक जीवन दर्शन है। यह आयोजन उस आस्था का पर्व है जहाँ भगवान स्वयं भक्तों के समीप आते हैं, समाज को समरसता और सेवा का संदेश देते हैं और भक्तों को प्रेम, त्याग और भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। 2025 की रथ यात्रा फिर से लाखों दिलों को जोड़ने, आस्था को गहराई देने और सांस्कृतिक गौरव को प्रदर्शित करने का अवसर होगी।