लिंग, विद्यालय और समाज (Gender, School and Society)

 लिंग, विद्यालय और समाज (Gender, School and Society) 

 विषय का परिचय:

‘लिंग, विद्यालय और समाज’ विषय B.Ed पाठ्यक्रम में एक अत्यंत महत्वपूर्ण इकाई है, जो यह समझने में मदद करता है कि लिंग आधारित भूमिकाएं, भेदभाव, शिक्षा और सामाजिक संरचनाएं किस प्रकार एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। यह विषय समाज में समानता, न्याय और समावेशन की शिक्षा देता है।

 1. लिंग (Gender) की अवधारणा:

● लिंग (Gender) क्या है?

  • लिंग सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण है जो पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग भूमिकाओं, कर्तव्यों और अपेक्षाओं में बाँटता है।
  • यह जैविक ‘सेक्स’ से भिन्न होता है।
    • Sex = जैविक अंतर (पुरुष/महिला)
    • Gender = सामाजिक भूमिका (लड़का/लड़की से जुड़े व्यवहार)

● लिंग आधारित सामाजिकीकरण:

  • बचपन से ही लड़कों और लड़कियों को विभिन्न तरीकों से प्रशिक्षित किया जाता है कि उन्हें क्या पहनना है, कैसे बोलना है, क्या खेलना है आदि।

 2. लिंग और समाज:

● समाज में लिंग आधारित भेदभाव:

  • लड़कों को ज़्यादा स्वतंत्रता दी जाती है जबकि लड़कियों पर नियंत्रण।
  • बाल विवाह, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, आदि सामाजिक कुरीतियाँ लिंग भेद को बढ़ावा देती हैं।

● परिवार में लिंग आधारित भूमिका:

  • लड़कों को कम उम्र से “कमाने वाला” और लड़कियों को “घर सँभालने वाली” की भूमिका सिखाई जाती है।

 3. लिंग और शिक्षा:

● शिक्षा में लिंग भेदभाव:

  • स्कूलों में लड़कियों को कम महत्व देना, पाठ्यपुस्तकों में पुरुष प्रधान चरित्र, लड़कियों की शिक्षा में कम निवेश आदि समस्याएँ आम हैं।
  • खेल, विज्ञान और गणित में लड़कियों की भागीदारी को कम आँका जाता है।

● स्कूल के वातावरण का प्रभाव:

  • शिक्षक का व्यवहार, पाठ्यक्रम, बैठने की व्यवस्था, वेशभूषा नियम – सभी लिंग आधारित सोच को बढ़ावा या तोड़ सकते हैं।

 4. पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में लिंग संवेदनशीलता:

● समस्याएँ:

  • पुस्तकों में महिला पात्र सीमित और पारंपरिक भूमिकाओं में होते हैं।
  • निर्णय लेने, नेतृत्व, या वैज्ञानिक पात्रों में महिलाएँ कम दिखाई देती हैं।

● समाधान:

  • लिंग-संवेदनशील पाठ्यक्रम तैयार करना।
  • महिला योगदान को समान रूप से चित्रित करना।
  • शिक्षा में समावेशिता और समानता लाना।

 5. शिक्षक की भूमिका:

  • लिंग के प्रति संवेदनशील वातावरण बनाना।
  • भेदभाव रहित भाषा और व्यवहार का प्रयोग।
  • लड़कों और लड़कियों दोनों को समान अवसर प्रदान करना।
  • रूढ़िवादी मान्यताओं को तोड़ना और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना।

 6. सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम:

  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
  • राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी)
  • Right to Education (RTE) Act में लैंगिक समानता को महत्व
  • POSCO Act और Domestic Violence Act – सुरक्षा के लिए

 7. लिंग और शिक्षा में नवाचार:

  • लिंग अध्ययन क्लब (Gender Clubs) का निर्माण
  • बाल संसद में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाना
  • Digital Learning Tools से लड़कियों की शिक्षा को सशक्त बनाना

 निष्कर्ष:

‘लिंग, विद्यालय और समाज’ विषय हमें यह सिखाता है कि शिक्षा केवल ज्ञान देने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने का सबसे शक्तिशाली उपकरण है। जब तक विद्यालय लिंग-संवेदनशील नहीं होंगे, तब तक समाज में सच्चा परिवर्तन संभव नहीं।

 

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