विषय-केंद्रित पाठ्यचर्या एवं पर्यावरणवादी दृष्टिकोण
विषय-केंद्रित पाठ्यचर्या (Subject-Centered Curriculum)
परिभाषा:
विषय-केंद्रित पाठ्यचर्या एक पारंपरिक शिक्षण मॉडल है जिसमें शिक्षा का केंद्र विषयों की संरचना और अनुशासन होता है। इसमें विषयों को स्वतंत्र इकाइयों के रूप में पढ़ाया जाता है और छात्र से अपेक्षा की जाती है कि वह उन विषयों को याद करे और उनमें दक्षता प्राप्त करे।
मुख्य विशेषताएँ:
- शिक्षा का उद्देश्य विषय की जानकारी देना होता है।
- शिक्षक की भूमिका निर्देशात्मक होती है।
- पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित और संरचित होता है।
- छात्र की रुचि और सामाजिक संदर्भ गौण रहते हैं।
उदाहरण:
- गणित, विज्ञान, हिंदी, इतिहास आदि विषयों को अलग-अलग रूप में पढ़ाना।
लाभ:
- विषय में गहन ज्ञान की प्राप्ति।
- शिक्षकों के लिए शिक्षण योजनाएँ बनाना आसान।
- शैक्षणिक मूल्यांकन स्पष्ट होता है।
सीमाएँ:
- छात्रों की आवश्यकताओं की उपेक्षा।
- व्यावहारिक जीवन से दूरी।
- रचनात्मकता और समस्या समाधान क्षमता का विकास कम होता है।
पर्यावरणवादी दृष्टिकोण (Environmentalist Approach – Incorporating Local Concerns)
परिभाषा:
पर्यावरणवादी दृष्टिकोण वह शैक्षिक पद्धति है जिसमें स्थानीय पारिस्थितिकी, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुद्दों को पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाया जाता है। इसका उद्देश्य छात्रों को अपने स्थानीय परिवेश के प्रति जागरूक और उत्तरदायी बनाना है।
मुख्य विशेषताएँ:
- स्थानीय समस्याओं और संसाधनों पर आधारित शिक्षा।
- छात्रों को अपने परिवेश से जोड़ना।
- शिक्षण में प्रोजेक्ट व कार्यानुभव विधियों का प्रयोग।
- सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर बल।
उदाहरण:
- स्थानीय जल संकट पर आधारित अध्ययन।
- स्थानीय वन्य जीवन और पारंपरिक पर्यावरण संरक्षण पद्धतियों का विश्लेषण।
- पास के गांवों या क्षेत्रों में जाकर सामाजिक अध्ययन करना।
लाभ:
- शिक्षा अधिक प्रासंगिक और अनुभवात्मक बनती है।
- सामाजिक चेतना और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व विकसित होता है।
- समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता बढ़ती है।
सीमाएँ:
- विषय की संरचना बिखरी हो सकती है।
- मूल्यांकन प्रणाली जटिल हो सकती है।
- शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता।
निष्कर्ष:
विषय-केंद्रित पाठ्यचर्या ज्ञान के अनुशासनात्मक विकास के लिए आवश्यक है, जबकि पर्यावरणवादी दृष्टिकोण शिक्षा को स्थानीय और व्यवहारिक बनाता है। एक प्रभावी शिक्षक को इन दोनों दृष्टिकोणों को संतुलित रूप से अपनाना चाहिए ताकि छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सके।