विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या (Subject-Centered Curriculum)

 विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या(Subject-Centered Curriculum )

 प्रस्तावना:-

शिक्षा का मूल उद्देश्य न केवल जानकारी देना है, बल्कि व्यक्ति के समग्र विकास, समाज के साथ सामंजस्य और आत्म-प्रदर्शन की दिशा में मार्गदर्शन करना भी है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधि और मूल्यांकन प्रक्रिया अपनाई जाती है, वह पाठ्यचर्या कहलाती है। इस लेख में हम विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या की विशेषताओं, सैद्धांतिक आधार, आलोचनात्मक दृष्टिकोण और समकालीन उपयोगिता का गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।

 विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या: परिभाषा 

विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या वह दृष्टिकोण है जिसमें शिक्षा की संरचना पारंपरिक विषयों के आधार पर की जाती है। इस दृष्टिकोण में विषय-वस्तु को प्राथमिकता दी जाती है, न कि शिक्षार्थी या सामाजिक अनुभवों को। इसमें ज्ञान को विशुद्ध रूप से “अंतर्वस्तु” (Content) माना जाता है और सीखने की प्रक्रिया को विषय के तार्किक अनुक्रम में व्यवस्थित किया जाता है।

सैद्धांतिक आधार: यह पाठ्यचर्या दर्शनशास्त्र की अनुभववाद (Empiricism) और बौद्धिकतावाद (Intellectualism) पर आधारित है। यह मान्यता रखती है कि ज्ञान को वर्गीकृत कर क्रमशः प्रस्तुत करने से सीखने की प्रभावशीलता बढ़ती है।

 प्रमुख विशेषताएँ:-

  • विषय-प्रधान संरचना: पाठ्यक्रम को विषयों (जैसे गणित, इतिहास, विज्ञान आदि) में विभाजित किया जाता है।
  • शिक्षक-केंद्रित शिक्षण: शिक्षक ज्ञान का स्रोत होता है और छात्र निष्क्रिय ग्रहणकर्ता होते हैं।
  • मूल्यांकन आधारित प्रणाली: विषय के अंकों व परीक्षाओं पर अत्यधिक बल होता है।
  • तर्क और स्मरण की प्रधानता: रचनात्मकता व अनुभव की अपेक्षा स्मरण शक्ति और तथ्यों पर बल।

 समालोचनात्मक विश्लेषण:-

 सकारात्मक पक्ष:

  • ज्ञान की गहराई और स्पष्टता प्रदान करता है।
  • प्रमाण आधारित अधिगम को बढ़ावा देता है।
  • प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च शिक्षा के लिए सुनियोजित संरचना
  • शिक्षा के मानकीकरण में सहायक।

 नकारात्मक पक्ष:

  • छात्र की आवश्यकताओं व अनुभवों की उपेक्षा
  • व्यावहारिक जीवन से कटाव, जिससे सीखना कृत्रिम हो जाता है।
  • विषयों के अंतर्विषयक (interdisciplinary) संबंधों की अनदेखी।
  • सृजनात्मकता, सहानुभूति व सामाजिक समझ जैसे कौशलों का अभाव।
  • समाज, संस्कृति और भाषा की स्थानीय विविधताओं की उपेक्षा।

 समकालीन शिक्षा में प्रासंगिकता

आज वैश्विक शिक्षा प्रणाली सीखने को बहुआयामी (multidimensional) और छात्र-केंद्रित बना रही है। इस संदर्भ में विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमाएँ और भी स्पष्ट हो जाती हैं। यद्यपि यह संरचना आज भी प्रवेश परीक्षाओं, अकादमिक शोध, और विषय विशेषज्ञता के लिए प्रासंगिक है, परंतु इसे अनुभवजन्य शिक्षण, अंतर्विषयक दृष्टिकोण और व्यवहारिक जीवन से जोड़ने की आवश्यकता है।

 नवाचार की आवश्यकता

ब्लूम का टैक्सोनॉमी, कंस्ट्रक्टिविज़्म, एनईपी 2020 जैसे नवाचार इस बात की ओर संकेत करते हैं कि शिक्षा में केवल विषय की दक्षता पर्याप्त नहीं है। हमें ऐसी पाठ्यचर्या की आवश्यकता है जो ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और मूल्यों का संतुलन बनाए रखे। इसलिए विषय-केन्द्रित दृष्टिकोण को अब मिश्रित प्रविधियों (Eclectic Approach) के साथ एकीकृत करना समय की मांग है।

 निष्कर्ष

विषय-केन्द्रित पाठ्यचर्या शिक्षा की ऐतिहासिक और सैद्धांतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मॉडल रही है, जिसने ज्ञान के संरक्षण और विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परंतु 21वीं सदी के समाज, शिक्षार्थी और वैश्विक ज़रूरतों को देखते हुए इसे अब एक लचीले, समावेशी और अनुभव-आधारित पाठ्यक्रम में रूपांतरित करने की आवश्यकता है। इसका एक आधुनिक संस्करण तभी सफल होगा जब यह ज्ञान को जीवन से जोड़ने, समाज को समझने और शिक्षार्थी को केंद्र में लाने का कार्य करे।

 

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